भारत सरकार ने अनुसंधान-प्रवर्धन तथा उद्योग-शिक्षा-अनुसंधान साझेदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री फेलोशिप स्कीम फॉर डॉक्टोरल रिसर्च (“Prime Minister’s Fellowship Scheme for Doctoral Research”) नामक एक विशेष स्कीम प्रारंभ की है। इसमें मुख्य रूप से डॉक्टोरल (PhD) शोधकर्ताओं को उद्योग-सहयोगी मॉडल के तहत फेलोशिप दी जाती है।
यह एक पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर तैयार की गई स्कीम है, जिसका लक्ष्य है —
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अकादमिक संस्थानों एवं उद्योग के बीच ताल-मेल को बढ़ावा देना,
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उद्योग-प्रासंगिक अनुसंधान को उत्साहित करना,
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और देश में उच्चस्तरीय शोध-पर्यावरण (research ecosystem) का निर्माण करना।
इस स्कीम के माध्यम से शोधकर्ताओं को वित्तीय सहायता के साथ-साथ — “त्वरित शोध” (industry-relevant research) की दिशा में कार्य करने का अवसर मिलता है।
उद्देश्य एवं महत्व
इस योजना के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं:
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देश के युवाओं को डॉक्टोरल शोध की ओर आकर्षित करना, विशेष रूप से उन शोध-विषयों की ओर जो विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, कृषि, चिकित्सा आदि में हों।
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शोध के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना तथा नेतृत्व-गुणों वाले शोधकर्ताओं का निर्माण करना।
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शोध-परिणामों का व्यावसायीकरण (commercialisation) तथा उद्योग-आधारित अनुसंधान को बढ़ाना।
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अकादमिक संस्थाओं और उद्योग के बीच सहयोग को सुदृढ़ करना ताकि नवोन्मेष (innovation) तथा तकनीकी विकास तेज हो सके।
उद्योग-सहयोगी शोध मॉडल की वजह से, शोध न केवल सिद्धान्त तक सीमित रहता है बल्कि वास्तविक दुनिया की समस्याओं से जुड़ता है, जिससे शोध का सामाजिक और आर्थिक महत्व बढ़ता है।
पात्रता एवं योग्यता
यहाँ इस योजना के लिए पात्रता के मुख्य बिंदु दिए गए हैं:
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फुल-टाइम PhD शोधकर्ता होना आवश्यक है, जो कि किसी मान्यता प्राप्त भारतीय विश्वविद्यालय/संस्थान/अनुसंधान-प्रयोगशाला (research laboratory) में नामांकित हो।
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पीएचडी नामांकन (registration) या प्रवेश (admission) आवेदन-मिति से अधिकतम 14 महीने पहले होना चाहिए।
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एक उद्यम-सहयोगी (industry partner/co-applicant) होना चाहिए, जो शोधकर्ता के प्रस्तावित शोध विषय को आर्थिक व तकनीकी समर्थन दे सके।
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शोध-विषय (research topic) को उद्योग-प्रासंगिक होना चाहिए, अर्थात् प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उद्योग में उपयोगीय हो।
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चयनित शोधकर्ता को अन्य किसी फेलोशिप/वेतन/शुशुल्क (salary/scholarship) से लाभ नहीं है या होने पर उसे रोकना होगा।
इन पात्रता शर्तों को पूरा करना आवश्यक है। यदि कोई शर्त पूरी नहीं होती है तो आवेदन अमान्य हो सकता है।
वित्तीय सहायता (फेलोशिप की राशि)
इस योजना के अंतर्गत चयनित शोधकर्ताओं को निम्नलिखित वित्त-सहायता उपलब्ध होती है:
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फेलोशिप राशि: प्रति वर्ष लगभग ₹ 6 लाख प्रति वर्ष (लगभग) तक हो सकती है, जैसा कि पूर्व में नियम थे।
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यह राशि दो हिस्सों में विभाजित होती है: 50 % राशि Science & Engineering Research Board (SERB) / सरकार द्वारा और बाकी 50 % राशि उद्योग-सहयोगी द्वारा।
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फेलोशिप की अधिकतम अवधि 4 वर्ष तक होती है।
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हाल के अपडेट के अनुसार तथा अन्य समान योजनाओं में (जैसे Prime Minister’s Research Fellowship – PMRF) में अधिक राशि एवं अन्य लाभ दिए गए हैं (लेकिन यह अलग योजना है)।
उदाहरण के तौर पर: “प्रस्ताव में 4 वर्ष तक पीएचडी करने वाले शोधकर्ता को प्रतिवर्ष का फेलोशिप दिया जाएगा, जिसमें उद्योग-सहयोगी द्वारा हिस्सेदारी होगी।”
आवेदन प्रक्रिया एवं चयन
आवेदन प्रक्रिया
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शोधकर्ता एवं उद्योग-सहयोगी मिलकर संयुक्त रूप से आवेदन करते हैं। आवेदन फार्म ऑनलाइन उपलब्ध होते हैं।
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शोध विषय व उद्योग-सहयोगी की भूमिका स्पष्ट रूप से बतानी होती है।
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चयनित उम्मीदवार को संस्थान, उद्योग और चयन समिति के बीच एक समझौते (MOU) पर हस्ताक्षर करना पड़ता है, जिसमें शोधकर्ता-संस्थान-उद्योग की भूमिकाएँ स्पष्ट हों।
चयन प्रक्रिया
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प्रस्तावित शोध-विषय का तकनीकी एवं वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाता है।
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उद्योग-सहयोगी की भागीदारी व शोधकर्ता की क्षमता पर भी ध्यान दिया जाता है।
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एक “एपेक्स काउंसिल” द्वारा अंतिम चयन किया जाता है, जिसमें उद्योग व अकादमिक दोनों पक्षों के प्रतिनिधि होते हैं।
अन्य मुख्य बिंदु
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चयनित शोधकर्ता को अन्य फेलोशिप/सैलरी बंद करनी होती है।
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अगर उद्योग-सहयोगी फेलोशिप अवधि दौरान सहयोग करना बंद कर देता है, तो फेलोशिप रद्द हो सकती है।
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लाभ / फायदे
इस योजना के अंतर्गत शोधकर्ता को कई लाभ मिलते हैं:
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उच्च-स्तरीय फेलोशिप राशि मिलने से आर्थिक दायित्व कम होता है और शोध पर ध्यान केंद्रित करना आसान होता है।
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उद्योग-सहयोगी के साथ जुड़ने से शोध को व्यावसायीकरण (commercialisation) एवं वास्तविक-विश्व के अनुप्रयोग (real-world applicability) का अवसर मिलता है।
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अकादमिक संस्थान, उद्योग व शोधकर्ता के बीच सहयोग बढ़ने से शोध-पर्यावरण में नयापन व गहराई आती है।
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शोधकर्ता का प्रोफाइल दृढ़ बनता है, नेटवर्क उभरता है, और भविष्य में करियर-विकल्पों में भी मदद मिल सकती है।
चुनौतियाँ / सीमितताएँ
यद्यपि यह योजना अनेक रूप से उपयोगी है, परंतु कुछ चुनौतियाँ भी सामने आती हैं:
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उद्योग-सहयोगी का चयन करना और शोध विषय को उद्योग-प्रासंगिक बनाना एक कठिन कार्य हो सकता है।
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यदि उद्योग-पार्टनर समय-पर सहयोग नहीं कर पाता, तो फेलोशिप जोखिम में पड़ सकती है।
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फेलोशिप अवधि (4 वर्ष) सीमित है — यदि पीएचडी में विलंब हो जाए तो समय-दबाव हो सकता है।
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चयन प्रक्रिया अपेक्षाकृत जटिल हो सकती है, और प्रतियोगिता भी अधिक होती है।
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उद्योग-सहयोगी के साथ समझौता (intellectual-property rights, डेटा शेयरिंग आदि) को लेकर विवाद हो सकते हैं।
उदाहरण एवं प्राथमिक आंकड़ें
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इस स्कीम के आरंभ वर्ष लगभग 2012–13 में हुए, जब इसे नामकरण के बाद पहला बैच शुरू हुआ।
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“यदि उद्योग-सहयोगी व शोधकर्ता में अच्छी-भागीदारी हो, तो शोध-परिणाम जल्दी सामने आ सकते हैं और शोध नेटवर्क भी मजबूत बनता है।”
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हालाँकि सार्वजनिक आंकड़ों में चयन संख्या व वितरण का पूरा विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह ज्ञात है कि “प्रत्येक वर्ष लगभग 100 नए फेलोशिप देने का लक्ष्य” रखा गया था।
आवेदन करते समय ध्यान देने योग्य सुझाव
यदि आप इस स्कीम के लिए आवेदन करना चाह रहे हैं, तो निम्न सुझाव आपके लिए लाभदायक हो सकते हैं:
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शोध-विषय तैयार करें – पहले से एक अच्छा प्रस्ताव तैयार रखें जिसमें उद्योग-प्रासंगिकता (industrial relevance) स्पष्ट हो।
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उद्योग-सहयोगी ढूंढें – एक कंपनी या उद्योग संस्था से सहयोग सुनिश्चित करें, जो आपकी शोध में आर्थिक एवं तकनीकी भागीदारी कर सके।
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समय-सीमा देखें – पंजीकरण (registration) की तारीख, नामांकन की अवधि (14 महीने) आदि नियमों को ध्यान दें।
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समझौते (MOU) और आईपी (IP) मुद्दों को समझें – उद्योग-सहयोगी के साथ अधिकार और दायित्वों की रूपरेखा पहले से स्पष्ट कर लें।
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संस्थान-गाइड का चयन – शोध मार्गदर्शक (supervisor) का अनुभव एवं शोध-परिसर का माहौल महत्वपूर्ण है।
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प्रतियोगिता को ध्यान में रखें – चयन कठिन हो सकता है, इसलिए अपनी योग्यता, शोध प्रस्ताव और उद्योग-सहयोगी नेटवर्क को मजबूत करें।
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वित्त-प्लान बनाएं – फेलोशिप राशि व अन्य खर्चों का सहज अनुमान लगाएँ ताकि शोध के दौरान आर्थिक व्यवधान न हो।
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स्कीम का भविष्य एवं निष्कर्ष
“Prime Minister’s Fellowship Scheme for Doctoral Research” तकनीक-उन्मुख भारत के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उद्योग-शिक्षा-अनुसंधान के संगम से न केवल शोध की गुणवत्ता में वृद्धि होगी बल्कि भारत में नवोन्मेष और शोध-व्यवसायीकरण (research commercialisation) को भी बल मिलेगा।
हालाँकि चुनौतियाँ यथास्थान हैं—उद्योग-सहयोग की कमी, निधि-वितरण में देरी, चयन की प्रतिस्पर्धा आदि—फिर भी यह स्कीम शोध-प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने वाला महत्वपूर्ण अवसर है। यदि आप शोध के प्रति समर्पित हैं, उद्योग-सहयोगी खोजने में सक्षम हैं और उत्कृष्ट शोध-विषय तैयार कर सकते हैं, तो यह स्कीम आपके लिए एक स्वर्णिम अवसर साबित हो सकती है।
अंत में कहना चाहूँगा कि शोध सिर्फ डॉक्टोरल डिग्री प्राप्ति तक सीमित नहीं है बल्कि समाज, उद्योग, देश के विकास में योगदान देना भी है। इस दिशा में यह फेलोशिप एक सशक्त माध्य है।